भर्तृहरी का समग्र चिंतन लोक भाव की अभिव्यक्ति है- आचार्य मिथिला प्रसाद त्रिपाठी
साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल द्वारा उज्जैन में राजा भर्तृहरि व्याख्यान सम्पन्न हुआ।”भर्तृहरि का लोक चिंतन” विषय पर आयोजित व्याख्यान के मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. प्रेमलता चुटैल, प्राध्यापक हिन्दी ने भर्तृहरि के चिंतन की वर्तमान प्रासंगिकता को रेखांकित किया। डॉ. हरिमोहन बुधौलिया, पूर्व विभागाध्यक्ष, विक्रम विश्वविद्यालय ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए उनकी ऋषि परंपरा में उपस्थिति को साहित्य इतिहास की उपलब्धि बताया।कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. बालकृष्ण शर्मा, पूर्व कुलपति, विक्रम विश्वविद्यालय ने उनके शतकों पर चर्चा करते हुए ससन्दर्भ अपना उद्बोधन दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. मिथिला प्रसाद त्रिपाठी, पूर्व कुलपति, महर्षि पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय ने की। उन्होंने कहा कि -“भर्तृहरी स्वयं जोगी होने के कारण लोक के मध्य में विचरते रहे। यही कारण है कि उस काल का समाज जीवन, उसकी समस्याएं तथा सामाजिक और आध्यात्मिक समाधान सब कुछ उनके शतकों में प्राप्त होता है। उनकी लोक में व्याप्ति का यही मुख्य कारण रहा। कार्यक्रम में विशेष उपस्थिति परमश्रद्धेय स्वामी सुबोधानन्द जी महाराज की रही।नवनाथ परंपरा में भर्तृहरि के अवदान पर अपने विचार रखे।
स्वागत वक्तव्य साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने किया। श्री दवे ने कहा कि कोरोना काल के बाद साहित्य अकादमी का यह प्रथम प्रकट कार्यक्रम उज्जैन में करके हमने भूतभावन भगवान महाकाल की आज्ञा प्राप्त की है।अब यह विमर्श क्रम सतत चलता रहेगा। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार श्रीमती रश्मि बजाज भराड़िया, उज्जैन ने किया।